3. मध्यस्थता से होने वाले लाभ : -
(i) मध्यस्थता एक ऐसा मार्ग प्रस्तुत करती है, जिसमें पक्षों को समझौता कराने के लिए सहमत किया जाता है तथा पक्षों के मध्य उत्पन्न मतभेदों को दूर करने के लिए अवसर प्राप्त होता है।
(ii) रिश्तों में आई दरार से हुए नुकसान की पूर्ति करने का अवसर प्राप्त होता है।
(iii) एक ऐसा उपाय है, जिसमें पक्ष स्वयं अपना निर्णय ले सकते हैं।
(iv) हिंसा, घृणा, धमकियों से हटकर एक सभ्य उपाय है, जिससे विवादों का निराकरण निकाला जा सकता है।
(v) विवादग्रस्त पक्षों में आपसी बातचीत और मधुर संबंध बनाने का अवसर प्राप्त होता है।
(vi) यह प्रक्रिया मुकदमें का विचारण नहीं करती और न ही गुणदोष पर निर्णय देती है।
(vii) यह प्रक्रिया किसी भी न्यायिक प्रक्रिया की अपेक्षा सस्ती है।
(viii) इसमें सफलता की संभावनाएं अधिक है तथा यह किसी भी स्थिति में पक्षों के लिए लाभकारी है।
(ix) इस प्रक्रिया मेँ पक्षोँ मेँ एक-दुसरे की बातेँ सुनने, भावनाओँ को समझने का सही अर्थोँ मेँ अवसर प्राप्त होता है।
(x) इस प्रक्रिया मेँ किसी प्रकार का भय नहीँ होता, पक्ष अपने को सुरक्षित महसूस करतेँ हैँ क्योकि प्रक्रिया गोपनीयतापूर्ण है, अतः पक्ष अपनी बात को खुले मन से कह पाते हैँ, उन्हे किसी का भय नहीँ होता।
(xi) इस प्रक्रिया मेँ पक्ष स्वयं अपना निर्णय लेते हैं, अतः उनकी आशाओं के विपरीत किसी भी अप्रत्याशित निर्णय प्राप्त होने की संभावना नहीं रहती, जैसा कि न्यायालय की प्रक्रिया में अक्सर होता है।
(xii) मध्यस्थता से समझौता कुछ घंटों या दिनों में ही प्राप्त हो जाता है। अनेक महीनों या वर्षों तक यह प्रक्रिया नहीं चलती अर्थात समय की बचत होती है।
(xiii) जहां न्यायालय के आदेश के अनुपालन कराने में भी अनेक कठिनाईयां उत्पन्न होती है, वहां मध्यस्थता से प्राप्त समझौता स्वयं पक्षों का स्वेच्छा से प्राप्त निर्णय होता है, अतः उसके क्रियान्वयन में कोई कठिनाई नहीं होती है।
(xiv) न्यायिक प्रक्रिया के वाद समय में ही प्रस्तुत किया जा सकता है, जबकि मध्यस्थता में विवादों को किसी भी स्तर पर निपटाया जा सकता है, इसमें विलंब कभी नहीं होता।
(xv) इस प्रक्रिया द्वारा प्राप्त समझौते से मन को शांति मिलती है।
(xvi) मध्यस्थता के माध्यम से निराकृत प्रकरणों में न्याय शुल्क की छूट प्रदान की गई है।